पारंपरिकताक संग आधुनिकता

मालती मिश्रा मैथिली मे नवप्रवेशी कवयित्री छथि। हिन्दी मे हिनक दू गोट कविता-संग्रह प्रकाशित छनि। हिन्दी सँ मैथिली दिस अयबा मे हिनका गौरव-बोध होइत छनि। मैथिली पर जे आसन्न संकट सभ अछि तकर प्रतिकार एही तरहक चेतना सँ होयत। आरम्भिक चरण मे बेसी गोटेक हाथ हिन्दी मे उसरैत छनि। तकर अनेक कारण सभ अछि मुदा भाषा रक्षार्थ अनेक लेखक घरमुहाँ भेलाह अछि। ताहू मे जँ दृष्टि-सम्पन्न रचनाकार मैथिली मे आबथि त’ ई सोन मे सुगंधि सन अछि। मालती मिश्रा जी सैह गमकैत सोन छथि। 

समकालीन मैथिली कविता पर किछु अनावश्यक आरोप सभ अछि। पहिल आरोप त’ यैह अछि जे ई छंदक विरोधी अछि। हमरा लगैत अछि जे छंदमुक्त कविता केँ खारिज करबाक उद्देश्य सँ ई गढ़ल गेल आरोप थिक। छंदबद्ध आ छंदमुक्त कवि लोकनिक मध्य अराड़ि ठाढ़ करबा मे एहेन तरहक अनेक कुतर्क सभ गढ़ल गेल अछि। मालती मिश्रा जीक कविता मे एकर प्रतिकार भेटत। ओ यथासंभव छंदबद्ध लिखलनि अछि आ अपना केँ समकालीनता सँ जोड़ने रहबा मे सफल रहली अछि। लय सँ कविता मजगूते होइत अछि। हँ, तुक स्थापित करबाक लेल यदि जबर्दस्तीक बे-उरेब प्रयोग होयत त’ स्वाभाविक अछि जे ओ खटकत। मालती मिश्रा जे लय मे रहली आ बे-उरेब शब्दक चयन सँ एकात रहली अछि। 

कविताक विषय की होइ आ ओकर अभिव्यक्ति कोना कयल जाइ, कवि लोकनिक लेल सदैव ई चुनौती जकाँ रहल अछि। एहि कवयित्री लग भाषाक प्रांजलता छनि, भाव केँ अभिव्यक्त करबाक सामर्थ्य छनि मुदा विषय चयन मे ओ पारंपरिकता सँ आगू नहि आबि सकलीह अछि मुदा एतय हमर अभीष्ट दोसर तरहक अछि। पारंपरिक विषय केँ की एकदम सँ निरस्त क’ देल जयबाक चाही? पारंपरिक विषय मे आधुनिकताक चेन्हासी की एकदम्मे नहि देखाइत छैक? हम नवता आ परंपरा मे सामंजस्यक आग्रही छी आ यैह आग्रह हमरा एहि संग्रह मे देखबा मे अबैत अछि।

मालती मिश्रा जी शिक्षिका छथि। अपन घर सँ अस्सी किलोमीटर दूर स्कूल जाइत छथि। स्वाभाविक अछि जे घुरती मे सेहो एतबे दूरी तय करैत छथि। तकर बाद घर-परिवारक राज-काज त’ असवारे रहैत छनि। एहेन कठिन स्थिति मे लेखन कार्य करब साधारण बात नहि अछि। ताहि पर सँ मातृभाषा मैथिलीक अभियानी सेहो छथि। भाषा रक्षार्थ कोनो टा आयोजन-प्रयोजन ओ नहि छोड़ैत छथि। कविताक अतिरिक्त कथा-लेखन मे हिनका मोन लगैत छनि। निबन्ध-आलेख, समीक्षा आदि सेहो लिखैत छथि। कोना समय निकालैत छथि से शोधक विषय भ’ सकैत अछि। ककरहु चकबिदोर लागि सकैत अछि।

मैथिली साहित्य केँ हिनका सँ बड्ड अपेक्षा अछि। एहि संग्रह केँ अहाँ सभ जँ पढ़बै, हिनक उत्साहवर्धन करबै त’ अपन नामानुरूप ई मैथिलीक उपवन केँ आर गमका देती। हम त’ हिनक श्रम आ प्रतिभा सँ चमत्कृत छी। 

 

अजित आजाद

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